रहमत 07/22/2016 साहुलीयात से तुझे याद करते हैं शर्म मुझको नहीं गुरुर तुझको नहीं सरे आम ना-फ़र्मानी, और आँखोमे खौफ नहीं गुनाह मेरी फ़ितरत में है माफ़ी तेरी आदत में है रस्ते ग़लत हैं और तरीके भी ग़लत मेरे ज़न्नत में हमें जगह नहीं पर रहमत से तेरी जुदा नहीं ~अन्वारे ईलाही
साहुलीयात से तुझे याद करते हैं शर्म मुझको नहीं गुरुर तुझको नहीं सरे आम ना-फ़र्मानी, और आँखोमे खौफ नहीं गुनाह मेरी फ़ितरत में है माफ़ी तेरी आदत में है रस्ते ग़लत हैं और तरीके भी ग़लत मेरे ज़न्नत में हमें जगह नहीं पर रहमत से तेरी जुदा नहीं ~अन्वारे ईलाही